न कोई शीशमहल, न कोई ताज़ हूँ मैं । न कोई प्रेमगीत, न कोई अल्फाज़ हूँ मैं । छुपा रखा है मुझे, सब ने अपने दिलों में, जो लबों तक न आया,वही 'राज़' हूँ मैं ।