न कोई शीशमहल, न कोई ताज़ हूँ मैं ।
न कोई प्रेमगीत, न कोई अल्फाज़ हूँ मैं ।
छुपा रखा है मुझे, सब ने अपने दिलों में,
जो लबों तक न आया,वही 'राज़' हूँ मैं ।
Friday, February 21, 2014
तेरे दिल में
तेरे दिल में अपना मकान रखते हैं | सच तो ये है सारा जहांन रखते हैं | हर बात लबों से कहें जरूरी तो नहीं, खामोश नैन भी इक ज़ुबान रखते हैं |
No comments:
Post a Comment