शहीद सरबजीत सिंह को समर्पित मेरी कविता " खून का बदला " --
फिर एक बेटा छीन लिया, पाकिस्तानी गद्दारों ने ।
फिर भी मुँह तक न खोला, हमारे सरदारों ने ।
जिसके बेटे की हिफाज़त में, हम 65 करोड़ लुटा बैठे ।
भाईचारे के चक्कर में, हम अपना सिर कटा बैठे ।
23 वर्ष तक हर दर्द सहा , उस बेचारे निर्दोषी ने ।
किन्तु हमदर्दी न दिखलाई, पाकिस्तानी दोषी ने ।
उसकी माँ बेटी बहना का दर्द, कोई समझ न पाएगा ।
25 लाख देकर 'राहुल' , सरबजीत वापिस न आएगा ।
कभी सिर काटे, कभी पीठ में छुरा खोंपा है ।
दूध पीकर हमारा कुत्ता, हम पर ही भौंका है ।
बहुत हो चुका, और सरबजीत हम न खोएंगे ।
अब न बिल्कुल दर्द सहेंगे, अब हम न रोएंगे ।
अब तो भाईचारे की , मिठाइयाँ बाँटना छोड़ दो ।
आँख उठाकर न देखे वो , आँखें उसकी फोड़ दो ।
हर ईंट का जबाब, हमको पत्थर से देना होगा ।
अब खून का बदला, बस खून से ही लेना होगा ।
- राहुल 'राज'