Thursday, December 12, 2013

दोहे

भक्त कहे  भगवान  से , ये कैसा संयोग । 
मुझको तो दाना नहीं , खुद को छप्पन भोग ।। 
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नित्य आइना देखकर , रह जाता हूँ मौन । 
जब ये ही उल्टा कहे , सच बतलाए कौन ।।
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सिर्फ मिठाई मांग ली , दीवाली की रात । 
बच्चा भूखा सो गया , माँ रोई सब रात ॥ 
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आँखों में छाई नमी , होठों पे मुस्कान । 
मात-पिता ने जब किया , निज कन्या का दान ॥ 
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मन्दिर मस्ज़िद सब लखे , घूम लिया हर धाम । 
माँ के आँचल में मिले , हर मज़हब के राम ॥ 
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वर्तमान को देखकर , रोते राधा - श्याम । 
प्रेम गली में हो रहा , प्रेम स्वयं नीलाम ॥ 
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जादूगरनी है उसे , हर जादू का ज्ञान । 
मेरे सर पे हाथ रख , गायब करे थकान ॥
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दूर भले ही तन रहे , मन लेकिन हो साथ । 
शर्त अगर मंजूर हो , तो फिर थामो हाथ ॥ 
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होकर खड़ा मज़ार से , बोला एक शहीद । 
दुश्मन के सर काट लूँ , तभी मनाऊं ईद ।

- राहुल 'राज'

Monday, August 12, 2013

गज़ल ..


मैंने अब जिन्दिगी जीना सीख लिया ।
ज़हर से अश्कों को पीना सीख लिया ।

क्यूँ करूँ भरोसा अब इस दुनियादारी पे ,
अपने हाथों से जख्म सीना सीख लिया ।

बहुत रो लिया मैं तेरी यादों में रात भर ,
अब हर बात पे मुस्कुराना सीख लिया ।

कसम खाई है दुनिया को रोशन करने की ,
मैंने भी दीये की तरह जलना सीख लिया ।

तेज़ हवाओं मुझे डराने की कोशिश न करो,
मैंने अब तूफानों से टकराना सीख लिया ।

- राहुल 'राज' 

हर चेहरे में ...


हर चेहरे में तेरा चेहरा नज़र आता है । 
असर तेरा कुछ गहरा नज़र आता है । 
इक तेरे सिवा कोई बसा नहीं अब तक,
इस दिल पे तेरा पहरा नज़र आता है । 

- राहुल 'राज'

Thursday, June 6, 2013

रूठकर मुझसे तुम, अब किधर जाओगे...


रूठकर मुझसे तुम, अब किधर जाओगे ।
मुझको मालुम है, फिर इधर आओगे ।

चाँदनी रह न पाए, कभी चाँद बिन ,
तितलियाँ फूल के बिन, क्या रह पायेंगीं ?
उड़ न पाएगी चिड़िया, कभी पाँख बिन,
नीर के बिन ये नदियाँ, क्या बह पायेंगीं ?
तुम रहे जो अगर, दूर मुझसे प्रिये,
टूटकर इक पल में , बिखर जाओगे ।

तुम भुला दो मुझे, है ये मुकिंन मगर,
मेरी यादों को , कैसे भुलाओगे तुम।
तेरे ख्वाबों में आऊँगा, रातों को मैं,
देखना है कि कब तक, रुलाओगे तुम ।
हर तरफ तुमको, मैं ही नज़र आऊँगा ,
जाओगे तुम जिधर भी , उधर पाओगे ।
रूठकर मुझसे तुम, अब किधर जाओगे...

- राहुल 'राज'

Monday, May 6, 2013

" खून का बदला "



शहीद सरबजीत सिंह को समर्पित मेरी कविता " खून का बदला " -- 

फिर एक बेटा छीन लिया, पाकिस्तानी गद्दारों ने । 
फिर भी मुँह तक  न  खोला,  हमारे  सरदारों ने । 

जिसके बेटे की हिफाज़त में, हम 65 करोड़ लुटा बैठे । 
भाईचारे के चक्कर  में,  हम अपना सिर कटा बैठे । 

23 वर्ष तक हर दर्द सहा ,  उस बेचारे निर्दोषी ने । 
किन्तु हमदर्दी न दिखलाई, पाकिस्तानी दोषी ने । 

उसकी माँ बेटी बहना का दर्द, कोई समझ न पाएगा । 
25 लाख देकर 'राहुल' , सरबजीत वापिस न आएगा । 

कभी सिर काटे, कभी पीठ में छुरा खोंपा है । 
दूध पीकर हमारा कुत्ता, हम पर ही भौंका है । 

बहुत हो चुका, और सरबजीत हम न खोएंगे ।  
अब न बिल्कुल  दर्द सहेंगे, अब हम न रोएंगे । 

अब तो भाईचारे की , मिठाइयाँ बाँटना छोड़ दो । 
आँख उठाकर न देखे वो , आँखें उसकी फोड़ दो । 

हर ईंट का जबाब, हमको पत्थर से देना होगा । 
अब खून का बदला, बस खून से ही लेना होगा । 

- राहुल 'राज'  

Sunday, March 31, 2013

गज़ल


नम हैं आँखें और, सर झुकाए बैठे हैं |
लगता है आप भी , चोट खाए बैठे हैं |

क्या नशीयत दें ,किसी को आशियाने की ,
हम तो खुद ही ,अपना घर जलाए बैठे हैं |

करीबी लोगों से , जरा सी दूरियां रखना ,
वो मुस्कान के पीछे, खंजर छुपाए बैठे हैं |

दुश्मन करे दगा तो , इतना दर्द नहीं होता,
हम तो अपनों से ही,  चोट खाए बैठे हैं |

वो बदनाम हो जाता, महफिल में 'राज',
शुक्र है हम सारे , राज़ छुपाए बैठे हैं |

ग़ज़ल


झूठ कहते है सब कि वो दूर है मुझसे,
बिन बुलाये वो ख्वाबों में चली आती है |

लहरा दे वो जब अपनी घनी जुल्फें,
बिन बुलाये बरसात चली आती है |

महक जाती है उसकी खुशबु से वो गली,
जिस गली से वो मुस्कुराते चली आती है |

अपने-पराये सब साथ छोड़ जाते हैं 'राज',
जब कभी गरीबी मेरे घर चली आती है | 

माँ


जख्मों को जैसी , दवा लगती है ।
माँ मुझे तेरी , दुआ लगाती है ।
हर रोज उतारी है , माँ ने नज़र ,
मुझे कहाँ बुरी , हवा लगती है ।

बेवफ़ा..


जिसको चाहा वही , बेवफ़ा हो गया ।
न जाने क्यूँ वो हमसे, कफ़ा हो गया ।
हम बनाते रहे वहाँ , घरोंदे  रेत  के  ,
एक आई लहर सब , सफ़ा हो गया ।

" प्रस्ताव गीत "


इस ज़माने से मुझको मिलीं ठोकरें,
आप ही अपना मुझको बना लीजिए । 
कब तक मैं भटकता फिरूं दर-ब-दर,
अपने दिल में मुझको बसा लीजिए ।

चाँद तारे तो, मैं तोड़ सकता नहीं ।
साथ तेरा मगर, छोड़ सकता नहीं ।
थाम लो तुम अगर हाथ मेरे प्रिये,
ये तूफां भी हमें मोड़ सकता नहीं । 
दे सको अगर जन्मों तक साथ मेरा,
हमसफ़र अपना मुझको बना लीजिए ...

ये दीया प्यार का सदा जलता रहे । 
हर जन्म प्यार तेरा मिलता रहे । 
हम न बदलेंगे इस बदल की दौड़ में,
चाहे ये जमाना सारा बदलता रहे । 
मैं रहूँगा सदा तेरी आँखों में प्रिये,
काजल अपना मुझको बना लीजिए...




होली मुबारक..


रामू का  घर जला , यूसुफ़ की दुकान ।

एक धमाके ने ले ली, हजारों की जान ।

मज़हब का नाम न दो , आतंकी को ,

न वो हिंदू होता है, न वो मुसलमान ।

Tuesday, March 5, 2013

गज़ल

        घर जिनके, आसमान के करीब होते हैं ।
      दौलत के अमीर, दिल के गरीब होते हैं ।
                                

      दुश्मनों से नहीं, फ़क़त अपनों से डर है,

      धोखा देते हैं वही ... जो करीब होते हैं ।
                     

     जन्नत मिली किसी को, किसी को दोजख ,

     ये सब ....... अपने-अपने नसीब होते हैं ।
                            

      बच के रहना  , इन हुश्न वालों से 'राज' ,

      ये भला कब ....किसी के हबीब होते हैं ।
              ( हबीब = दोस्त )


Tuesday, February 12, 2013

महक आज भी है..



                                रफ्ता - रफ्ता हो गयीं दूरियाँ तो क्या ,
                                 उसको पाने की कसक आज भी है ।
                                सीने से लगाया था मुझको कभी उसने,
                                मेरी सांसों में उसकी महक आज भी है ।




Monday, February 11, 2013

मेरी आँखों की झीलों में...


मेरी आँखों की झीलों में, जो नमकीन पानी है ।
जो बीती है मेरे दिल पे , तजुर्बों की कहानी है ।
जो रहती है मेरे दिल में, मेरी धड़कन बनकर ,
वो थोड़ी सी पगली है, वो थोड़ी सी दीवानी है । 

हम (ह - हिन्दू + म - मुसलमान ) एक रहेंगे .....

तू गीता और, मैं कुरान हो जाऊं ।
दो जिस्म और एक जान हो जाऊं ।
मोहब्बत रहे कायम सदा जहां में ,
तू दीवाली और,मैं रमजान हो जाऊं ।
- राहुल 'राज'

राहुल 'राज'


न कोई शीशमहल , न कोई ताज़ हूँ मैं ।
न कोई प्रेमगीत ,न कोई अल्फाज़ हूँ मैं ।
छुपा रखा है मुझे, सब ने अपने दिलों में, 
जो लबों तक न आया, वही 'राज़' हूँ मैं ।
- राहुल 'राज'

माँ


हजारों लात खाकर भी, मुझे अमृत सा दूध पिलाती थी ।
अच्छा-अच्छा मुझे खिलाती , खुद भूखी सो जाती थी ।

मेरा रोना सुनकर वो, दौड़ी - दौड़ी आती थी ।
नींद न आती मुझको, लोरी मधुर सुनाती थी ।

सो जाती खुद गीले में, सूखे में मुझे सुलाती थी ।
हल्दी दूध पिलाती जब, चोट मुझे लग जाती थी ।

बुरी नज़र न लग जाए, काला टीका मुझे लगाती थी ।
ठंड लगती अगर खुद को, स्वेटर मुझे पहनाती थी ।

सुबह-सुबह न जाने कैसे, वो जल्दी उठ आती थी ।
टिफिन बनाकर देती , स्कूल मुझे पहुंचाती थी ।

जब मैं घर से बाहर जाता , छुप-छुप कर रोती थी ।
मेरी फ़िक्र करती दिन भर , रात को न सोती थी ।

मेरे थके हारे आने पे ,वो खाना लेकर आती थी
हाथ फेरती मेरे सर पे,वो मंद-मंद मुस्काती थी ।

" माँ "


माँ धरती है , माँ नभ है , माँ ही पाताल है ।
माँ ईश्वर है, माँ मंदिर है, माँ पूजा का थाल है ।

माँ ही गीता की वाणी , माँ में बसी कुरान है । 
माँ ही बाइबल है , माँ गुरुग्रन्थ की जुबान है ।

माँ मंदिर है, माँ मस्ज़िद है, माँ गिरजाघर गुरुद्वारा है ।
माँ जैसा न प्यार किसी का, माँ जैसा न कोई प्यारा है ।

माँ दर्द है , माँ ममता का एक अहसास है ।
माँ रोते बच्चे की भूख, माँ बच्चे की प्यास है।

माँ लोरी है, माँ कविता है, माँ ही संगीत है ।
माँ मोहब्बत है ,माँ इश्क़ है, माँ ही प्रीत है ।

माँ हाथों की मेहदी है , माँ बेटी की विदाई है ।
माँ हिमालय है , माँ सिन्धु सम गहराई है ।

माँ मुझमें, माँ तुझमें, माँ हम-सब में समाई है ।
माँ में सारी दुनिया , माँ कण-कण में समाई है ।

माँ सुबह है, माँ शाम है, माँ ममता का नाम है ।
माँ मक्का है, माँ मदीना है, माँ ही चारों धाम है ।

- राहुल 'राज'