न कोई शीशमहल, न कोई ताज़ हूँ मैं ।
न कोई प्रेमगीत, न कोई अल्फाज़ हूँ मैं ।
छुपा रखा है मुझे, सब ने अपने दिलों में,
जो लबों तक न आया,वही 'राज़' हूँ मैं ।
Saturday, December 18, 2010
दर्द ही सही मेरी मुहब्बत का इनाम तो आया ...
दर्द ही सही मेरी मुहब्बत का इनाम तो आया |
खाली ही सही हाथों में जाम तो आया | कहकर बेवफा मुझको रुसबा किया है उसने, यूँ ही सही उसके लबों पे मेरा नाम तो आया |
No comments:
Post a Comment