न कोई शीशमहल, न कोई ताज़ हूँ मैं ।
न कोई प्रेमगीत, न कोई अल्फाज़ हूँ मैं ।
छुपा रखा है मुझे, सब ने अपने दिलों में,
जो लबों तक न आया,वही 'राज़' हूँ मैं ।
Sunday, March 31, 2013
माँ
जख्मों को जैसी , दवा लगती है । माँ मुझे तेरी , दुआ लगाती है । हर रोज उतारी है , माँ ने नज़र , मुझे कहाँ बुरी , हवा लगती है ।
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