हजारों लात खाकर भी, मुझे अमृत सा दूध पिलाती थी ।
अच्छा-अच्छा मुझे खिलाती , खुद भूखी सो जाती थी ।
मेरा रोना सुनकर वो, दौड़ी - दौड़ी आती थी ।
नींद न आती मुझको, लोरी मधुर सुनाती थी ।
सो जाती खुद गीले में, सूखे में मुझे सुलाती थी ।
हल्दी दूध पिलाती जब, चोट मुझे लग जाती थी ।
बुरी नज़र न लग जाए, काला टीका मुझे लगाती थी ।
ठंड लगती अगर खुद को, स्वेटर मुझे पहनाती थी ।
सुबह-सुबह न जाने कैसे, वो जल्दी उठ आती थी ।
टिफिन बनाकर देती , स्कूल मुझे पहुंचाती थी ।
जब मैं घर से बाहर जाता , छुप-छुप कर रोती थी ।
मेरी फ़िक्र करती दिन भर , रात को न सोती थी ।
मेरे थके हारे आने पे ,वो खाना लेकर आती थी
हाथ फेरती मेरे सर पे,वो मंद-मंद मुस्काती थी ।
अच्छा-अच्छा मुझे खिलाती , खुद भूखी सो जाती थी ।
मेरा रोना सुनकर वो, दौड़ी - दौड़ी आती थी ।
नींद न आती मुझको, लोरी मधुर सुनाती थी ।
सो जाती खुद गीले में, सूखे में मुझे सुलाती थी ।
हल्दी दूध पिलाती जब, चोट मुझे लग जाती थी ।
बुरी नज़र न लग जाए, काला टीका मुझे लगाती थी ।
ठंड लगती अगर खुद को, स्वेटर मुझे पहनाती थी ।
सुबह-सुबह न जाने कैसे, वो जल्दी उठ आती थी ।
टिफिन बनाकर देती , स्कूल मुझे पहुंचाती थी ।
जब मैं घर से बाहर जाता , छुप-छुप कर रोती थी ।
मेरी फ़िक्र करती दिन भर , रात को न सोती थी ।
मेरे थके हारे आने पे ,वो खाना लेकर आती थी
हाथ फेरती मेरे सर पे,वो मंद-मंद मुस्काती थी ।
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